October 25, 2019

क्यों मनाई जाती है धनतेरस?


चपन में जब भी कभी कही धनतेरस का ज़िक्र सुना तो लगा ये कही न कही त्यौहार धन वैभव से संबंधित है ।

उम्र के शायद २८ धनतेरस देखने के बाद पता चला ये त्यौहार मूलतः दो करानो से मनाया जाता है, और आश्चर्य की बात ये है के दोनों में धन प्राप्ति का कोई उल्लेख नहीं है।

समुद्र मंथन में धनवंतरि का प्रादुर्भाव..

धनतेरस का नाम भगवान धनवंतरि से आया है, हमारे शास्त्र कहते है जब समुद्र मंथन हुआ तब कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी के दिन धनवंतरि अपने हाथों में अमृत कलश लेकर प्रकट हुए थे।

धनवंतरि जी ऊपर की दोंनों भुजाओं में शंख और चक्र धारण किये हुये हैं, दो अन्य भुजाओं मे से एक में जलूका और औषध तथा दूसरे मे अमृत कलश लिये हुये हैं। धनवंतरि जी ने अमृतमय औषधियों की खोज की थी।

इनके वंश में दिवोदास जी हुए जिन्होंने विश्व का पहला 'शल्य चिकित्सा' विद्यालय काशी में स्थापित किया, जिसके प्रधानाचार्य सुश्रुत जी बनाये गए थे।

सुश्रुत दिवोदास के ही शिष्य और ॠषि विश्वामित्र जी के पुत्र थे। वे विश्व के पहले शल्य चिकित्सक(सर्जन) थे, और उन्होंने ही सुश्रुत संहिता लिखी थी।

ॐ नमो भगवते धन्वन्तरये अमृत कलश हस्ताय सर्व आमय
विनाशनाय त्रिलोक नाथाय श्री महाविष्णुवे नम: ||

अर्थात, जो हाथ में अमृत कलश लिये हैं, वे सर्वभय नाशक हैं, सब रोगो का नाश करते हैं। जो तीनों लोकों के स्वामी हैं, उन विष्णु स्वरूप धनवंतरि जी को हम नमन करते है।

अश्विनी जी को जो महत्व वैदिक काल में प्राप्त था, वही महत्व पौराणिक काल में धनवंतरि को प्राप्त हुआ। जहा अश्विनी के हाथ में मधुकलश था और वही धनवंतरि के पास अमृत कलश।

भगवान् धनवंतरि विष्णु के अंश है और रोगों से हमारी रक्षा करते है। चिकित्सा में धनवंतरि जी के योगदान और उनके जन्मदिवस के कारण धनतेरस को इनकी पूजा की जाती है।


वामन अवतार और राजा बलि का महादान..

एक अन्य पौराणिक कथा के अनुसार देवताओं को राजा बलि के अत्याचार से मुक्त कराने के लिए भगवान विष्णु ने वामन के अवतार में प्रकट हुए। जब वामन देव राजा बलि से भिक्षा मांगने गए तब शुक्राचार्य ने वामन रूप में भगवान विष्णु को पहचान लिया। शुक्राचार्य जी ने बलि को सचेत किया पर, बलि ने शुक्राचार्य जी के एक न सुनी और वामन देव को तीन पग भूमि दान करने के लिए कमंडल से जल लेकर संकल्प लेने लगे।

बलि को दान से रोकने के लिए शुक्राचार्य ने कमंडल में लघु रूप धारण करके प्रवेश किया और जल निकलने के मार्ग पर जाकर बैठ गए। जल बहार न आता देख वामन ने अपने हाथ में रखे हुए कुशा को कमण्डल के जल मार्ग में डाला जिससे शुक्राचार्य जी की एक आंख फूट गई और वे छटपटाकर कमण्डल से बाहर आ गए।

बलि ने तीन पग भूमि दान करने का संकल्प ले लिया, और तब वामन ने अपने एक पैर से पूरी पृथ्वी को नाप लिया और दूसरे पग से अंतरिक्ष को। तीसरा पग रखने के लिए कोई स्थान नहीं होने पर बलि ने अपना सिर वामन भगवान के चरणों में रख दिया।

कभी अपने आपको बलि की जगह रखके देखिएगा, और सोचियेगा अगर आप बलि होते तो क्या आप इतना बड़ा दान कर पाते? मैंने कई बार खुदको बलि के स्थान पर रखके देखा, सच कहु हर बार संकल्प लेना तो दूर कमंडल उठाने का साहस तक न जुटा पाया।

जो सब कुछ जानते हुए भी अपना सर्वस्व दान कर दे, वह इंसान कितना महान रहा होगा? शायद इसीलिए राजा बलि को महादानी कहते है, और उनका नाम शास्त्रों में स्वर्ण अक्षरों में अंकित है।

बलि के भय से देवताओं को मुक्ति मिली और बलि ने जो धन-संपत्ति देवताओं से छीन ली थी उससे कई गुना धन-संपत्ति देवताओं को मिल गई। इस उपलक्ष्य में भी धनतेरस का त्योहार मनाया जाता है।


धनवंतरि जी आप सबको आरोग्य रखे और ईश्वर आपको राजा बलि जैसा दानी बनाये इसी कामना के साथ आप सबको धनतेरस की बधाई।

-K Himaanshu Shuklaa..

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