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September 27, 2019

पितृगमन और माँ दुर्गा की यात्रा के आरम्भ का दिन है महालया


पितृपक्ष, जिसे श्राद्ध पक्ष  भी कहते हैं, भाद्र पद मास की पूर्णिमा को प्रारंभ होता है तथा 16 दिनों के बाद अश्विनी मास की अमावस्या को समाप्त होता है। इसी अमावस्या को ही महालया अमावस्या भी कहते हैं।

पौराणिक मान्यता के अनुसार महालया के दिन पितृ अपने पुत्रादि से पिंडदान व तिलांजलि को प्राप्त कर अपने पुत्र व परिवार को सुख-शांति व समृद्धि का आशीर्वाद प्रदान कर स्वर्ग लोक चले जाते हैं।

महालया अमावस्या का महत्व इसलिए भी अत्यधिक हो जाता है क्योंकि इस महालया अमावस्या के दिन सभी पूर्वज अपने वंशजों के द्वार पर आते हैं। इसलिए जब किसी को इस बात का पता नहीं होता है कि उसके पूर्वजों का श्राद्ध किस तिथी को आता है, तो वे अपने सभी पूर्वजों का श्राद्ध इस अमावस्या पर कर सकते हैं। इसी वजह से इस अमावस्या हिन्दु धर्म के शास्त्रों में सर्वपितृ विसर्जनी अमावस्या भी कहा गया है।

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इस दिन माँ दुर्गा अपने बच्चों गणेश, कार्तिकेय, लक्ष्मी और सरस्वती के साथ कैलाश से धरती पर अपने मायके आने की यात्रा प्रारम्भ करती है।

महालया के दिन ही 'चक्षु-दान' होता है जिसमे मां दुर्गा की अधूरी गढ़ी हुई प्रतिमा पर आंखें बनायी जाती हैं। महालया का शाब्दिक का अर्थ होता है- 'आनंद निकेतन'। इस दिन से देवी पक्ष प्रारंभ होता है इसीलिए सुबह उठकर मां दुर्गा का आवाहन किया जाता है।


जागो! तुमि जागो। 
जागो दुर्गा, जागो दशोप्रहर धारिणी, अभय शक्ति बलप्रदायिनी तुमि जागो
प्रणामी बरोदा अजरा अतुला, बहुबलधारिणी रिपुदलाबारिणी
जागो माँ ..

शरणमयी, चंद्रिका, शंकरी जागो,
जागो अशूरोबिनाशिनी तुमि जागो,
जागो माँ..

मार्कंडेय महापुराण के देवीमाहात्- म्यम् का ये मंत्र सुन-पढ़कर बीते ५ वर्षो से महालय की भोर दुर्गा का आवाहन कर रहा हु। संभव हो तो आप भी सुनियेगा।

-K Himaanshu Shuklaa..

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