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September 13, 2019

Scientific significance of feeding crows in Pitra Paksh! (पितृ पक्ष में कौवे को खाना देने का वैज्ञानिक कारण)

श्राद्ध पक्ष में कौओं का बड़ा ही महत्व है। कहते है कौआ यम का प्रतीक है, यदि आपके हाथों दिया गया भोजन ग्रहण कर ले, तो ऐसा माना जाता है कि पितरों की कृपा आपके ऊपर है और वे आपसे ख़ुश है। कहते तो ये भी है व्यक्ति मरकर सबसे पहले कौआ के रूप में जन्म लेता है और कौआ को खाना खिलाने से वह भोजन पितरों को मिलता है।

शायद आपने ये सब अपने घर के किसी बड़े बुज़ुर्ग या फिर किसी पंडित या खुद को ज्योतिषाचार्य कहने वाले लोगो से सुना होगा। कभी पूछके देखिएगा पितृ पक्ष में काक का इतना महत्व क्यों है। वे अनगिनत किस्से कहानिया सुनाएंगे, या फिर कहेगे बड़े बुज़ुर्ग कहके गए है इसीलिए ऐसा करना चाहिए।

शायद ही कोई आपको इसके पीछे वैज्ञानिक कारण बता सके।

हमारे ऋषि मुनि और पौराणिक काल में रहने वाले लोग मुर्ख नहीं थे। कभी सोचियेगा कौवों को पितृ पक्ष में खिलाई खीर हमारे पूर्वजों तक कैसे पहुंचेगी? हमारे ऋषि मुनि विद्वान थे, वे जो बात करते या कहते थे उसके पीछे कोई न कोई वैज्ञानिक कारण छुपा होता था।

एक बहुत रोचक तथ्य है पितृ पक्ष, भादो, प्रकृति और काक के बीच।

एक बात बहुत विश्वास के साथ कह सकता हु, आपने स्वतः उग आये पीपल या बरगद का पेड़/ पौधा किसी न किसी दीवार, पुरानी इमारत, पर्वत या अट्टालिकाओं पर ज़रूर देखा होगा। देखा है न? ज़रा सोचिये पीपल या बरगद की बीज कैसे पहुंचे होंगे वाहा तक? इनके बीज इतने हलके भी नहीं होते के हवा उन्हें उड़ाके ले जा सके।

कुछ लोगो को अचरज होगा पर पीपल और बरगद के बीज यहाँ से वाहा पहुंचाने के काम में सबसे बड़ा हाथ हमारे काक महाराज का है।

अब सोचिये कैसे? पीपल और बरगद दोनों वृक्षों के टेटे कौवे खाते हैं और उनके पेट में ही बीज की प्रोसेसीग होती है, कठोर बीज थोड़ा नरम होता है और तब जाकर बीज उगने लायक होते हैं। उसके पश्चात कौवे जहां-जहां बीट करते हैं, वहां वहां पर यह दोनों वृक्ष उगते हैं। है न अद्भुत पारिस्थितिक तंत्र, जिसे हम eco-system भी कहते है। कितनी अद्भुत है प्रकृति की बरगद या पीपल लगाने की ये व्यवस्था।

कौवे का महत्व तो  समझ आ गया, अब बताये पीपल-बरगद में ऐसा क्या है और पितृ पक्ष से कौवे का क्या सम्भन्ध?

हमारे शास्त्रों में बरगद-पीपल को पूजनीय बताया है। एक तरफ सुहागन महिलाएं पूरे 16 श्रृंगार कर वट सावित्री का व्रत रख कर बरगद के पेड़ की पूजा करती हैं, कहते है इससे पति की उम्र बढ़ेगी। दूसरी तरफ पीपल का काटना वर्जित मन गया है, क्यूंकि यम का वास होता है पीपल में। पीपल चौबीस घंटे ऑक्सीजन देता है और एक बरगद दस पेड़ो के बराबर।

अगर ये पेड़ रहेंगे तो पति की क्या हम सबकी उम्र बढ़ेगी, प्रकृति में ऑक्सीजन प्रचुर मात्रा में होगी तो सबका जीवन काल बड़ा होगा।

यम और कौवे से जुडी एक रोचक कथा रामायण की उत्तर कांड में आती है। थोड़ी बड़ी है, पर पढियेगा

सम्राट मरुत्त एवं इन्द्र में सदैव युद्ध चलता ही रहता था, किन्तु इन्द्र मरुत्त को कभी भी पराजित न कर पाया । अन्त में इन्द्र को एक तरकीब सूझी, जिसके द्वारा मरुत को तंग करके उसे नीचा दिखाया जा सके । इन्द्र बृहस्पति के यहॉ गया, एवं बातों ही बातों में उसे राजी कर लिया कि, वह भविष्य में मरुत्त के यज्ञकार्य में पुरोहित का कार्य न करेगा ।

कालान्तर में मरुत्त ने यज्ञ करना चाहा, तथा उसके लिए बृहस्पति के पास जाकर इसने उनसे प्रार्थना की कि, वह पुरोहित का पद सँभालें । किन्तु इन्द्र की बातों में आये बृहस्पति  ने यज्ञ से मन कर दिया।

बृहस्पति से निराश होकर लौट रहे सम्राट मरुत्त को नारद मुनि ने एक सुझाव दिया। उसके बाद वह वाराणसी जाकर बृहस्पति के भाई संवर्त को बडे आग्रह के साथ यज्ञ में ऋत्विज बनाने के लिए ले आये। जब इन्द्र ने देखा कि बिना बृहस्पति के भे मरुत का यज्ञ आरम्भ हो रहा है, तथा संवर्त उसका ऋत्विज बनाया गया है, तब उसने इस यज्ञ में विभिन्न प्रकार से कई बाधाएँ डालने का प्रयत्न किया ।

 इन्द्र ने पहले अग्नि के साथ मरुत्त के पास यह संदेश भेजा कि, बृहस्पति यज्ञकार्य करने के लिए तैयार है, अतएव संवर्त की कोई आवश्यकता नहीं है । अग्नि मरुत्त के पास आया, किन्तु वह संवर्त को वहॉं देखकर इतना डर गया कि, कहीं वह उसे शाप ने दे दे ।इसके बाद इंद्र ने धृतराष्ट्र नामक गंधर्व से मरुत्त को संदेश मेजा, ‘यदि तुम यज्ञ करोगे, तो मैं तुम्हे वज्र से मार डालूँगा’। किन्तु संवर्त के द्वारा आश्वासन दिलाये जाने पर, मरुत्त अपने निश्चय पर कायम रहा ।  यज्ञ का प्रारंभ करते ही, इन्द्र के वज्र की आवाज़ सुनायी पड़ी, मरुत्त भयभीत हुए, परन्तु संवर्त ने इसे धैर्य बँधाया ।

 मरुत्त की इच्छा थी कि, इन्द्र, बृहस्पति एवं समस्त देवता इस यज्ञ में भाग ले कर हवन किये गये सोम को स्वीकार करें एवं उसे सफल बनायें । अतएव अपने मंत्रप्रभाव से संवर्त इन सभी देवताओं को बॉंध कर यज्ञस्थान पर ले आया । मरुत्त ने सभी देवताओं का सन्मान किया, एवं उनकी विधिवत् पूजा की ।

 बाद में मरुत्त के इस यज्ञ में विघ्न डालने के हेतु से रावण आया । रावण को देख कर देवता डर गए और मरुत्त युद्ध करने के लिए तत्पर हुआ । किन्तु यज्ञदीक्षा ली थी, अतएव यज्ञ से उठ न सका । रावण ने यज्ञ के वैभव देखा, तथा विना किसी प्रकार की हानि पहुँचाये वापस लौट गया।

"इन्द्रॊ मयूरः संवृत्तॊ धर्मराजस तु वायसः कृकलासॊ धनाध्यक्षॊ हंसॊ वै वरुणॊ ऽभवत"। 

रावण को देख कर डरे हुए देव, पशु पक्षी बनकर वह से भागने लगे। इंद्रा मोरे बने, कुबेर गिरगिट, वरुण हंस और यम ने कौवे का रूप लिया। बाद में यम ने कौवे को वरदान देते हुए कहा :

ये च मद्विषयस्थास तु मानवाः कषुधयार्दिताः
तवयि भुक्ते तु तृप्तास ते भविष्यन्ति सबान्धवाः

अर्थात, जब भूख से व्याकुल मनुष्य तुम्हारा पेट भरेगा तब उसे पुण्य मिलेगा और उसके पूर्वज तृप्त होंगे।

अब जानते है श्राद्ध पक्ष में कौवों को खिलाना क्यों है शुभ?

भारत में कौवों मार्च से अगस्त, या फिर अक्टूबर से दिसंबर तक प्रजनन करते है। मूलतः भादो याने अक्टूबर से दिसंबर के बीच जयादा प्रजनन  होता है ।

कौवों की नयी पीढ़ी को पौष्टिक और भरपूर आहार मिले जिससे वे बड़े होकर ढेर सारे पीपल बरगद लगाए,  इसलिए हमारे ऋषि मुनियों ने कौवों के नवजात बच्चों के लिए भादो में आने वाले श्राघ्द पक्ष में आहार की व्यवस्था कर दी।

कितने ज्ञानी, विद्वान और दूरदर्शी रहे होंगे न हमारे ऋषि मुनि, श्राघ्द के बहाने प्रकृति के रक्षण करना सीखा दिया।

कोशिश करे पितृ पक्ष में काक महाराज को आहार देने की, और सिर्फ पितृ पक्ष में क्यों साल भर क्यों नहीं? साल भर न नहीं, पर जब हो सके कौवे और अन्य पशु पक्षियों को खाना खिलाये, पीपल बरगद लगाए। जब आप ये करेंगे तो अपने जीवन काल में मोक्ष पा लेंगे।

ईश्वर से प्रार्थना करुगा, आप लोग पितृ पक्ष का सही महत्व समझे, झूठे पाखंडी पंडितों की बातों में न आये और इस धरा को थोड़ा और खूबसूरत बनाये।

-K Himaanshu Shuklaa..



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