चेयर पे बैठा प्रतिबोध पथराई आखों से एकटक सामने दीवार पर टंगी एकवीरा आई की तस्वीर को देख रहा था। उसने दीवार पर अपना सर टिकाया और आखें मूँद ली। वो चाहता था ये सब एक बुरे सपने की तरह खत्म हो जाए, वो भागना चाहता था सच से बहुत दूर और छुप जाना चाहता था अपनी आई के आँचल में।
प्रतिबोध शायद ६-७ साल का रहा होगा, तब उसके बाबा नवेंदु फैक्ट्री में लगी आग में जलकर स्वाहा हो गए थे। उस हादसे ने प्रतिबोध की आई कान्ता की हर ख़ुशी जला दी, पर कान्ता ने उस आग की आँच कभी भी प्रतिबोध पर ना आने दी।
माँ अपने हर दर्द, अपनी हर तकलीफ को एक पोटली में बाँध कर मन की किसी अँधेरे कमरे में छुपा देती है। और उस कमरे के ताले की चाभी होते है माँ की आंसू , जो कभी बच्चो के सामने नहीं गिरते। बच्चे देख पाते है तो बस नकाबकोष चेहरा, वो चेहरा जिसके पीछे जाने कितने राज़ छुपे है।
प्रतिबोध भी कहाँ देख पाया था अपनी आई का दर्द, उनका अकेलापन, उनकी तकलीफे, उनका संघर्ष। दिनभर काम करने के बाद जब कान्ता घर आती तब प्रतिबोध भाग कर उनके गले लग जाता और कहता, 'आई मला भूक लागली आहे (माँ मुझे भूख लगी है)'।
अपनी थकन भूलकर कान्ता सीधे किचन में चली जाती।
'बाळा मी तुझा करता पुरणपोळी बनवली आहे (बेटा मैंने तेरे लिए पूरनपोली बनाई है)', कान्ता कहती और प्रतिबोध उछलकर अपनी आई की गोद में बैठ जाता।
उसने कभी ये नहीं पुछा खाने वाले दो फिर पुरणपोळी एक क्यों? क्यों आई कभी उसके सामने खाना नहीं खाती? पूछ भी लेता तो कान्ता क्या जवाब देती? जिन घरों में वो बर्तन, झाड़ू पोछे का काम करती थी वहाँ से जो कुछ बासा, बचा हुआ खाना मिल जाता वो कान्ता वो खा लेती, पर प्रतिबोध के लिए हमेशा गरमा गरम खाना बनाती।
प्रतिबोध को याद है, एक बार जब वो कॉलेज से घर आया तब कान्ता बिस्तर पर लेटी थी, उसने ग़ुस्से में कहाँ था, 'उठ ना आई, ये सोने का टाइम है क्या ? मला भूक लागली आहे , जल्दी से कुछ बना दे '
बुखार में तप रही कान्ता, सब भूलकर अपने बेटे के लिए खाना बनाने चली गयी थी।
चाहे रात के २ बजे हो, चाहे कान्ता कितनी भी थकी हो, प्रतिबोध जब भी मनुहार करते हुए कहता, 'आई मला भूक लागली'। कान्ता फ़ौरन सब भूल कर प्रतिबोध के लिए कुछ ना कुछ बनाने किचन में चली जाती।
चेयर पे बैठा प्रतिबोध अचानक उठा और भाग कर सीधे ICU में गया, जहाँ मशीनो से घिरी उसकी आई आखरी साँसे ले रही थी। हताश प्रतिबोध ने आखरी कोशिश की और अपनी आई का हाथ पकड़ कर बोला, 'आई मला भूक लागली आहे '
कितना नादान था प्रतिबोध, उससे लगा ५ शब्दों का ये ब्रहास्त्र उसकी आई की ज़िन्दगी और मौत के युद्ध पर पूर्ण विराम लगा देगा, उसकी आई उठकर कहेगी, 'थांब मि तुझा करता झुणका-भाकरी बनवते (रुक मैं तेरे लिए झुणका-भाकरी बनाती हु)'।
पर इतना आसान है क्या मौत को हराना?
रोते हुए प्रतिबोध को अपने सर पर किसी का हाथ महसूस हुआ, वो उसकी आई का हाथ था।
कान्ता ने अपने दुप्पटे से प्रतिबोध के आंसू पोछे और उसके माथे को चूमा। प्रतिबोध के ख़ुशी की सीमा ना रही, उसने अपनी आई को गले लगाकर, थोड़ा गुस्से में कहाँ, 'क्या आई तू भी, कितना परेशान किया तूने। चल घर चलते है मुझे भूख लगी है।'
आई ने प्रतिबोध के गाल खींचे और बोली, 'पगला कही का। अब तक बच्चो जैसी हरकत करता है, अब बड़ा हो गया है तू। तू अब अपनी आई के बिना भी रह सकता है, अब मुझे जाने दे '
'तू कुठे जात आहेस (कहाँ जा रही हो),' रुआँसा मुँह बनाके प्रतिबोध ने पुछा।
कान्ता बोली, 'वही जहाँ सब जाते है'
घबराये हुए प्रतिबोध ने आई को और कस कर पकड़ लिया और बोला, 'मुझे माफ़ कर दे आई, मैंने हमेशा सिर्फ अपने बारे में सोचा, ना कभी तेरा ख़याल रखा ,ना कभी तुझसे पुछा की तू कैसी है। तुझसे सिर्फ माँगा, तुझे दिया कुछ नहीं । आई, मुझे माफ़ कर दे। आई मैं तुझे कही नहीं जाने दूंगा'
कान्ता ने प्रतिबोध के माथे को फिर चूमा, उसे जी भरके देखा, उसे बहुत सी दुआएं दी, जैसे उसकी हर गलती, हर नादानी को माफ़ कर रही हो, फिर हाथ जोड़ कर बोली, 'बाळा अत्ता मला जाऊ दे (बेटा मुझे जाने दे)'
अचानक से तेज़ रोने की आवाज़ सुनके प्रतिबोध की तन्द्रा टूटी उसे आभास हुआ वो एक सपना देख रहा था । प्रतिबोध के चाचा के बेटे प्रमोद ने कहाँ , 'आत्या गेली (चाची चली गयी)'।
-K Himaanshu Shuklaa
Kaha se laate hoo itna dard Shukla ji??
ReplyDeleteachchi story hai
ReplyDeleteKhoobsurti ki parakashtha❣
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