व्हील चेयर पर बैठी मनु अपने गोल्ड मेडल को निहार रही थी, वो गोल्ड मेडल जो उसने पिछले हफ्ते स्टेट लेवल चेस टूर्नामेंट में जीता था. पीछे लैंडलाइन लगातार घनघना रहा था, पर मनु अपने ख़यालो में खोई थी...खोई ना भी होती, तो शायद सुन नही पाती, उसकी हियरिंग मशीन की बैटरी जो डिसचार्ज हो गयी थी. पापा ने कहा था ऑफिस से आते वक़्त नयी बैटरी लेते हुए आएगे..
उसने मेडल को छूने के लिए हाथ बढ़ाया, तभी टेबल पे रखी तस्वीर में उसे अपनी माँ का प्रतिबिम्ब दिखा. मनु ने पलट के देखा तो माँ घबराई सी किसी से फोन पे बात करती हुई दिखी.
मनु की धड़कने तेज़ हो गयी, जी तो चाहा ज़ोर से आवाज़ देके माँ से पूछे, "हुआ क्या है?" पर पूछती कैसे? सोलह साल की मासूम मनु जन्म से ही गूंगी बहरी थी. ये सितम शयाद तकदीर को कम लगा, इसीलिए तीन साल की उम्र में पोलीयो से मनु के दोनो पैरों को निष्क्रिया करवा दिए.
पर कहते है ना तकदीर चाहे कितने सितम कर ले, अगर इंसान ठान ले तो तकदीर को घुटने टेकने पर मजबूर कर सकता है. मनु के आत्मविश्वास के आगे उसकी अपंगता हार गयी और आज मनु स्टेट लेवेल चॅंपियन है.
मनु ने अपने हाथों को व्हील चेयर के पहियों को पूरी ताक़त से घूमाया और कुछ ही पलों में माँ के पास चली गयी. उनके सर पर पसीने की उभर आई बूँदों को देख कर मनु समझ गयी थी, कुछ तो है जो ठीक नही है. पर माँ तो माँ होती है ना, वो जानती है अपने गम को अपने दिल में छुपाना.
मुझे लगता है, दुनिया की हर माँ एक अच्छी अदाकारा भी होती है, जाने कैसे वो अपने हर दुख को अंदर ही अंदर छुपा लेती है. वो नही चाहती उसकी परेशानी सुनके उसके बच्चों को एक पल का भी तकलीफ़ हो. मनु की माँ उसे गले लगाकर रोना चाहती थी, पर अगर वो मनु को अभी सब बता देगी तो मनु टूट जाएगी, फिर उसे संभालना मुश्किल होगा. ये सोचकर माँ ने मनु के माथे को चूमा और इशारों में कहा, उन्हे तुरंत झाँसी चलना होगा, नाना जी मनु से मिलना चाहते है.
मनु के होंठों पे खुशी की लहर दौड़ पड़ी, जो कुछ ही पलों में सूनामी बनके उसकी आँखों से बहने वाली थी.
दस मिनिट में पापा भी आ गये, वो मनु की हियरिंग मशीन की बैटरी लाए तो थे, पर उसे दी नही. उन्होने मनु को अपने गोद में उठाकर कार में आगे वाली सीट पर बैठाया, मनु की व्हील चेयर कार के उपर रखी और मनु की माँ के साथ कार की पीछे वाली सीट पर बैठ गये.
बरुआ सागर से झाँसी का सफ़र एक घंटे का था, पर मनु की माँ चाहती थी ये सफ़र कभी ख़त्म ही ना हो.
कार भागती रही और पीछे छूटते पेड़ों, रास्तों और घरों को देखकर मनु फिर एक बार खो गयी यादों की बाग़ीचे में जो कुछ साल पहले बंजर था. बात तब की है, जब मनु ने अपनी अपांगता से तंग आकर अपने दोनो हाथों की नसे काट ली थी. उस वक़्त नाना जी अपनी लैंब्रेटा स्कूटर पर मई की तपती धूप में झाँसी से बरुआ सागर आए थे, अपनी मनु से मिलने. उन्होने तब कुछ कहा तो नही, पर जब मनु को हॉस्पिटल से डिसचार्ज मिला तो वो ले गये थे अपनी मनु को अपने साथ उसके ननिहाल.
शरीर से अपंग मनु, अंदर से भी अपंग हो चली थी. नाना जी उसके डिप्रेशन को ख़त्म करने की हर मुमकिन कोशिश करते. सुबह उसे जल्दी उठाके योगा करवाते, फिर मंदिर लेके जाते, उसके बाद कभी गार्डेन तो कभी रानी महल घूमने लेके जाते. दिन भर उसे अच्छी कहानिया, कविताए, गाने और चुटकुले सुनाते, और रात को मनु को बाहों में सेमेटकर सो जाते.
एक बार जब मनु ने नाना जी से इशारों में उसके नाम का मतलब पूछा तो उन्होने मनु के गुलाबी गालों पे एक प्यार भारी चपत लगाते हुए कहा, 'इसका जवाब हम कल देंगे'.
दूसरे दिन ब्रेकफास्ट के बाद वो मनु को 'रानी महल' ले गये..वो रानी महल जिसे रघु नाथ महाराज ने बनवाया था, और जहा रानी लक्ष्मी बाई रहा करती थी.
पुराने महल की दीवार पर लगे एक नन्हे बरगद को देख कर नाना जी ने कहा,"वो छोटा सा बरगद देख रही हो ना मनु, उसे साल में सिर्फ़ वर्षा ऋतु में पानी मिलता है, और फिर पूरे साल वो प्यासा रहता है. उसकी जड़ों को फैलने के लिए मिट्टी नही है....है तो बस तपती धूप और इंतज़ार ..अगली बारिश का. इन सबके बावज़ूद वो समय, मौसम और हर परिस्थिति से सर उठाके लड़ता है. वो जीने की चाह नही छोड़ता."
उन्होने जब मनु के सर पे हाथ फेरा तो मनु खुद को रोक ना सकी और फफक-फफक कर रो पड़ी. "मैं जीना चाहती हू, पर अब हार रही हूँ नाना जी. क्या करू? कैसे करू? कुछ समझ नही आ रहा," मनु ने अपनी डायरी में लिखा और डायरी नाना जी को दे दी.
नानाजी ने मनु को गले से लगाया और फिर उची आवाज़ में अटल बिहारी वाजपेयी जी की कविता कहने लगे, "बाधाएं आती हैं आएं, घिरें प्रलय की घोर घटाएं. पावों के नीचे अंगारे, सिर पर बरसें यदि ज्वालाएं. निज हाथों में हंसते हंसते, आग लगा कर जलना होगा.. कदम मिला कर चलना होगा."
"तूने पूछा था ना मनु का मतलब क्या होता है? नाम के मतलब से ज़रूरी है उसके महत्व को समझना. जानती है बीट्टो कौन थी मनु ?," नानाजी ने जब ये पूछा तो मनु ने अपना एक हाथ हवा में उठाया, जैसे हाथ में तलवार पकड़ रखी हो.
नाना जी मुस्कुराते हुए बोले, "हा बीट्टो, मनु हमारी महारानी का नाम था. जो मणिकर्णिका से झाँसी की रानी लक्ष्मी बाई बनी और फिर अमर हो गयी अपनी मातृभूमि के लिए. वो शायद जानती होगी, अँग्रेज़ों से जीत उनके लिए मुश्किल होगी, फिर भी वो लड़ी. तब तक लड़ी, जब तक उनसे बन सका. मरते मरते भी हार नही मानी थी हमारी रानी ने. मैने इसीलिए तुझे नाम दिया था मनु. जब मणिकर्णिका ने हार नही मानी, उसके महल की दीवार में लगा ये बरगद हार नही मानता, तो फिर तूने क्यूँ घुटने टेक दिए बेटा? तू मनु है, मेरी झाँसी की रानी, तू लड़ेगी, आगे बढ़ेगी..अपने लिए, मेरे लिए और इस झाँसी के लिए."
ये कहते कहते नानाजी मनु को गले लगाकर रोए, बहुत रोए. और फिर मनु के आंसू पूछते हुए बोले, "बीट्टो तू कल कंप्यूटर पे चेस खेल रही थी. तुझे अच्छा लगता है चेस?"
मनु ने नाना जी के गालों से उनके आंसू पोछे और सर हिला कर हामी भर दी.
"तो फिर ठीक है, चलो घर जाकर हम चेस खेलते है," जब नानाजी ने ये कहा तो मनु समझ नही पाई आख़िर नाना जी के दिल में चल क्या रहा है? पर मनु के नाना जी को उसे डिप्रेशन से बहार लाने का रास्ता शायद मिल चुका था.
दोनो ने चेस खेलना शुरू कर दिया, नाना जी मनु को जीतने के नये नये पैतरे सिखाते और कभी कभी जान करके हार जाते. धीरे धीरे मनु का डिप्रेशन भी जाता रहा, और उससे जीने की एक वजह मिल गयी.
वो नानाजी की दिखाई राह और प्रेरणा ही थी, जिसके कारण मनु आज चेस में मध्य प्रदेश से स्टेट लेवल चॅंपियन थी. और एप्रिल में फर्स्ट फिज़िकली डिसेबल्ड नॅशनल इंडिविजुयल चेस चैंपियनशिप में भाग लेने वाली थी. यह साल २०१५ था, मनु के सुसाइड अटेंप्ट को अब पूरे पाँच साल हो चले थे.
कार में अचानक ब्रेक लगा, और मनु की तंद्रा टूटी. कार झांसी के जिला चिकित्सालय के सामने रुकी थी. मनु कुछ पूछती इससे पहले माँ ने उसके कानो में हियरिंग मशीन लगा दी और पापा ने कार के उपर से व्हील चेयर उतार ली.
अब मनु चिकित्सालय के इंटेन्सिव केर यूनिट के अंदर थी, जहाँ बेड पर नानाजी सो रहे थे. और उनके सीने पर सर रखकर माँ रो रही थी. मनु के पापा उन्हे संभालने की नाकाम कोशिशे कर रहे थे. तभी नानाजी का केरटेकर रमन अंदर आया और एक चिट्ठी मनु के पापा के हाथ में दे दी.
नानाजी को दिल का दौरा पड़ा था, रमन ही उन्हे अस्पताल लाया था. जाने से पहले वो मनु से मिलना चाहते थे, पर वक़्त कम था इसीलिए ई.सी.यू में डॉक्टर से ज़िद करके पेन-पेपर मँगवाया.और लड़खड़ाती उंगलियों से अपनी मनु के नाम खत लिख दिया था.
"मेरी प्यारी बीट्टो, मैं रहू ना रहू तू आगे बढ़ती रहना. जीवन में कितनी भी कठिनाई आए, लड़ते रहना. कभी भूलना मत, तू मनु है, मेरी झाँसी की रानी. नॅशनल चेस चैंपियनशिप के लिए ऑल द बे.."
शायद 'ऑल द बेस्ट, लिखना चाहते थे. पर इससे पहले नाना जी पूरा खत लिख पाते, उनके दिल ने साथ छोड़ दिया. घर का बूढ़ा बरगद अब नही रहा था, वो जा चुका था एक अनंत यात्रा पर.
मनु का शरीर जाम गया था. नानाजी की डेड बॉडी ई.सी.यू से बहार ले जाने की तैयारी होने लगी. पापा ने मनु से कहा, "बेटा तेरे नानाजी जा रहे है, एक आखरी बार नही मिलेगी?"
मनु ने हा में आँखे बंद की, और आँखें बंद करते ही उसकी आखों से दर्द की सूनामी बह निकली. इस सूनामी में मनु फिर एक बार डिप्रेशन में डूब सकती थी, पर मनु तो मनु थी नाना जी झाँसी की रानी वो हार कैसे मान सकती थी.
पापा मनु की व्हील चेयर को नानाजी के पार्थिव शरीर के पास ले गये. मनु ने एक पल को आँखें बंद की, उसे लगा जैसे नानाजी उससे वाजपेयी जी की कविता कह रहे हो, "अक्षय सूरज, अखंड धरती..केवल काया, जीती मरती."
मनु ने नानाजी का हाथ अपने हाथ में लिया, उसे चूमा और फिर उंगलियों से मृत हथेलियों पर लिख दिया, "फिर मिलेगे नानाजी.."
-K Himaanshu Shuklaa..
उसने मेडल को छूने के लिए हाथ बढ़ाया, तभी टेबल पे रखी तस्वीर में उसे अपनी माँ का प्रतिबिम्ब दिखा. मनु ने पलट के देखा तो माँ घबराई सी किसी से फोन पे बात करती हुई दिखी.
मनु की धड़कने तेज़ हो गयी, जी तो चाहा ज़ोर से आवाज़ देके माँ से पूछे, "हुआ क्या है?" पर पूछती कैसे? सोलह साल की मासूम मनु जन्म से ही गूंगी बहरी थी. ये सितम शयाद तकदीर को कम लगा, इसीलिए तीन साल की उम्र में पोलीयो से मनु के दोनो पैरों को निष्क्रिया करवा दिए.
पर कहते है ना तकदीर चाहे कितने सितम कर ले, अगर इंसान ठान ले तो तकदीर को घुटने टेकने पर मजबूर कर सकता है. मनु के आत्मविश्वास के आगे उसकी अपंगता हार गयी और आज मनु स्टेट लेवेल चॅंपियन है.
मनु ने अपने हाथों को व्हील चेयर के पहियों को पूरी ताक़त से घूमाया और कुछ ही पलों में माँ के पास चली गयी. उनके सर पर पसीने की उभर आई बूँदों को देख कर मनु समझ गयी थी, कुछ तो है जो ठीक नही है. पर माँ तो माँ होती है ना, वो जानती है अपने गम को अपने दिल में छुपाना.
मुझे लगता है, दुनिया की हर माँ एक अच्छी अदाकारा भी होती है, जाने कैसे वो अपने हर दुख को अंदर ही अंदर छुपा लेती है. वो नही चाहती उसकी परेशानी सुनके उसके बच्चों को एक पल का भी तकलीफ़ हो. मनु की माँ उसे गले लगाकर रोना चाहती थी, पर अगर वो मनु को अभी सब बता देगी तो मनु टूट जाएगी, फिर उसे संभालना मुश्किल होगा. ये सोचकर माँ ने मनु के माथे को चूमा और इशारों में कहा, उन्हे तुरंत झाँसी चलना होगा, नाना जी मनु से मिलना चाहते है.
मनु के होंठों पे खुशी की लहर दौड़ पड़ी, जो कुछ ही पलों में सूनामी बनके उसकी आँखों से बहने वाली थी.
दस मिनिट में पापा भी आ गये, वो मनु की हियरिंग मशीन की बैटरी लाए तो थे, पर उसे दी नही. उन्होने मनु को अपने गोद में उठाकर कार में आगे वाली सीट पर बैठाया, मनु की व्हील चेयर कार के उपर रखी और मनु की माँ के साथ कार की पीछे वाली सीट पर बैठ गये.
बरुआ सागर से झाँसी का सफ़र एक घंटे का था, पर मनु की माँ चाहती थी ये सफ़र कभी ख़त्म ही ना हो.
कार भागती रही और पीछे छूटते पेड़ों, रास्तों और घरों को देखकर मनु फिर एक बार खो गयी यादों की बाग़ीचे में जो कुछ साल पहले बंजर था. बात तब की है, जब मनु ने अपनी अपांगता से तंग आकर अपने दोनो हाथों की नसे काट ली थी. उस वक़्त नाना जी अपनी लैंब्रेटा स्कूटर पर मई की तपती धूप में झाँसी से बरुआ सागर आए थे, अपनी मनु से मिलने. उन्होने तब कुछ कहा तो नही, पर जब मनु को हॉस्पिटल से डिसचार्ज मिला तो वो ले गये थे अपनी मनु को अपने साथ उसके ननिहाल.
शरीर से अपंग मनु, अंदर से भी अपंग हो चली थी. नाना जी उसके डिप्रेशन को ख़त्म करने की हर मुमकिन कोशिश करते. सुबह उसे जल्दी उठाके योगा करवाते, फिर मंदिर लेके जाते, उसके बाद कभी गार्डेन तो कभी रानी महल घूमने लेके जाते. दिन भर उसे अच्छी कहानिया, कविताए, गाने और चुटकुले सुनाते, और रात को मनु को बाहों में सेमेटकर सो जाते.
एक बार जब मनु ने नाना जी से इशारों में उसके नाम का मतलब पूछा तो उन्होने मनु के गुलाबी गालों पे एक प्यार भारी चपत लगाते हुए कहा, 'इसका जवाब हम कल देंगे'.
दूसरे दिन ब्रेकफास्ट के बाद वो मनु को 'रानी महल' ले गये..वो रानी महल जिसे रघु नाथ महाराज ने बनवाया था, और जहा रानी लक्ष्मी बाई रहा करती थी.
पुराने महल की दीवार पर लगे एक नन्हे बरगद को देख कर नाना जी ने कहा,"वो छोटा सा बरगद देख रही हो ना मनु, उसे साल में सिर्फ़ वर्षा ऋतु में पानी मिलता है, और फिर पूरे साल वो प्यासा रहता है. उसकी जड़ों को फैलने के लिए मिट्टी नही है....है तो बस तपती धूप और इंतज़ार ..अगली बारिश का. इन सबके बावज़ूद वो समय, मौसम और हर परिस्थिति से सर उठाके लड़ता है. वो जीने की चाह नही छोड़ता."
उन्होने जब मनु के सर पे हाथ फेरा तो मनु खुद को रोक ना सकी और फफक-फफक कर रो पड़ी. "मैं जीना चाहती हू, पर अब हार रही हूँ नाना जी. क्या करू? कैसे करू? कुछ समझ नही आ रहा," मनु ने अपनी डायरी में लिखा और डायरी नाना जी को दे दी.
नानाजी ने मनु को गले से लगाया और फिर उची आवाज़ में अटल बिहारी वाजपेयी जी की कविता कहने लगे, "बाधाएं आती हैं आएं, घिरें प्रलय की घोर घटाएं. पावों के नीचे अंगारे, सिर पर बरसें यदि ज्वालाएं. निज हाथों में हंसते हंसते, आग लगा कर जलना होगा.. कदम मिला कर चलना होगा."
"तूने पूछा था ना मनु का मतलब क्या होता है? नाम के मतलब से ज़रूरी है उसके महत्व को समझना. जानती है बीट्टो कौन थी मनु ?," नानाजी ने जब ये पूछा तो मनु ने अपना एक हाथ हवा में उठाया, जैसे हाथ में तलवार पकड़ रखी हो.
नाना जी मुस्कुराते हुए बोले, "हा बीट्टो, मनु हमारी महारानी का नाम था. जो मणिकर्णिका से झाँसी की रानी लक्ष्मी बाई बनी और फिर अमर हो गयी अपनी मातृभूमि के लिए. वो शायद जानती होगी, अँग्रेज़ों से जीत उनके लिए मुश्किल होगी, फिर भी वो लड़ी. तब तक लड़ी, जब तक उनसे बन सका. मरते मरते भी हार नही मानी थी हमारी रानी ने. मैने इसीलिए तुझे नाम दिया था मनु. जब मणिकर्णिका ने हार नही मानी, उसके महल की दीवार में लगा ये बरगद हार नही मानता, तो फिर तूने क्यूँ घुटने टेक दिए बेटा? तू मनु है, मेरी झाँसी की रानी, तू लड़ेगी, आगे बढ़ेगी..अपने लिए, मेरे लिए और इस झाँसी के लिए."
ये कहते कहते नानाजी मनु को गले लगाकर रोए, बहुत रोए. और फिर मनु के आंसू पूछते हुए बोले, "बीट्टो तू कल कंप्यूटर पे चेस खेल रही थी. तुझे अच्छा लगता है चेस?"
मनु ने नाना जी के गालों से उनके आंसू पोछे और सर हिला कर हामी भर दी.
"तो फिर ठीक है, चलो घर जाकर हम चेस खेलते है," जब नानाजी ने ये कहा तो मनु समझ नही पाई आख़िर नाना जी के दिल में चल क्या रहा है? पर मनु के नाना जी को उसे डिप्रेशन से बहार लाने का रास्ता शायद मिल चुका था.
दोनो ने चेस खेलना शुरू कर दिया, नाना जी मनु को जीतने के नये नये पैतरे सिखाते और कभी कभी जान करके हार जाते. धीरे धीरे मनु का डिप्रेशन भी जाता रहा, और उससे जीने की एक वजह मिल गयी.
वो नानाजी की दिखाई राह और प्रेरणा ही थी, जिसके कारण मनु आज चेस में मध्य प्रदेश से स्टेट लेवल चॅंपियन थी. और एप्रिल में फर्स्ट फिज़िकली डिसेबल्ड नॅशनल इंडिविजुयल चेस चैंपियनशिप में भाग लेने वाली थी. यह साल २०१५ था, मनु के सुसाइड अटेंप्ट को अब पूरे पाँच साल हो चले थे.
कार में अचानक ब्रेक लगा, और मनु की तंद्रा टूटी. कार झांसी के जिला चिकित्सालय के सामने रुकी थी. मनु कुछ पूछती इससे पहले माँ ने उसके कानो में हियरिंग मशीन लगा दी और पापा ने कार के उपर से व्हील चेयर उतार ली.
अब मनु चिकित्सालय के इंटेन्सिव केर यूनिट के अंदर थी, जहाँ बेड पर नानाजी सो रहे थे. और उनके सीने पर सर रखकर माँ रो रही थी. मनु के पापा उन्हे संभालने की नाकाम कोशिशे कर रहे थे. तभी नानाजी का केरटेकर रमन अंदर आया और एक चिट्ठी मनु के पापा के हाथ में दे दी.
नानाजी को दिल का दौरा पड़ा था, रमन ही उन्हे अस्पताल लाया था. जाने से पहले वो मनु से मिलना चाहते थे, पर वक़्त कम था इसीलिए ई.सी.यू में डॉक्टर से ज़िद करके पेन-पेपर मँगवाया.और लड़खड़ाती उंगलियों से अपनी मनु के नाम खत लिख दिया था.
"मेरी प्यारी बीट्टो, मैं रहू ना रहू तू आगे बढ़ती रहना. जीवन में कितनी भी कठिनाई आए, लड़ते रहना. कभी भूलना मत, तू मनु है, मेरी झाँसी की रानी. नॅशनल चेस चैंपियनशिप के लिए ऑल द बे.."
शायद 'ऑल द बेस्ट, लिखना चाहते थे. पर इससे पहले नाना जी पूरा खत लिख पाते, उनके दिल ने साथ छोड़ दिया. घर का बूढ़ा बरगद अब नही रहा था, वो जा चुका था एक अनंत यात्रा पर.
मनु का शरीर जाम गया था. नानाजी की डेड बॉडी ई.सी.यू से बहार ले जाने की तैयारी होने लगी. पापा ने मनु से कहा, "बेटा तेरे नानाजी जा रहे है, एक आखरी बार नही मिलेगी?"
मनु ने हा में आँखे बंद की, और आँखें बंद करते ही उसकी आखों से दर्द की सूनामी बह निकली. इस सूनामी में मनु फिर एक बार डिप्रेशन में डूब सकती थी, पर मनु तो मनु थी नाना जी झाँसी की रानी वो हार कैसे मान सकती थी.
पापा मनु की व्हील चेयर को नानाजी के पार्थिव शरीर के पास ले गये. मनु ने एक पल को आँखें बंद की, उसे लगा जैसे नानाजी उससे वाजपेयी जी की कविता कह रहे हो, "अक्षय सूरज, अखंड धरती..केवल काया, जीती मरती."
मनु ने नानाजी का हाथ अपने हाथ में लिया, उसे चूमा और फिर उंगलियों से मृत हथेलियों पर लिख दिया, "फिर मिलेगे नानाजी.."
-K Himaanshu Shuklaa..
Nice story himanshu ji.full of emotions.best wishes.keep writing
ReplyDeleteoh my god
ReplyDeleteI am in tears
Brilliant
ReplyDeleteसर बहुत खूबसूरत स्टोरी है
ReplyDeleteFull on emotional story
ReplyDeleteपढ़के आँखों में आँसू आ गए हिमांशु...मनु की तरह एक दिन छोटी रूप ने भी अपने नानाजी को आख़िरी बार नानाजी बोला था.. फ़र्क़ बस ये था के रूप के नानाजी अपने मन की बातें जाते जाते सामने से कह गए थे.. यादें साथ ले गए.. आज नाना नानी कोई साथ नहीं हैं.. एक बार फिर उनकी याद दिलाने के लिए बहोत बहोत शुक्रिया ����
ReplyDeleteDil Ko Chu Jane wali kahani jo Nanaji Ko hamare Dil ke aur Kareeb le ayi ��.
ReplyDeleterula diya shukla ji :'(
ReplyDeleteYaar aansu aa gaye padh ke
ReplyDeleteSo inspiring. Beautiful story with lots of love in it. Mr Shukla you are genuinely a genius writer. Wish to read such stories more often.
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