करीब 10 साल पहले विष्णु सहस्रनाम का ये श्लोक कही पढ़ा था..
छायायां पारिजातस्य हेमसिंहासनोपरि, आसीनमम्बुदश्याममायताक्षमलङ्कृतम् ।
चन्द्राननं चतुर्बाहुं श्रीवत्साङ्कित वक्षसं, रुक्मिणी सत्यभामाभ्यां सहितं कृष्णमाश्रये ॥
Chaayayaam parijaatasya hemasimhasanopari, assen amambudha shyamam maayataaksham alankritam.. Chandraananam chatur baahum Srivatsaankita vakshasam, Rukmini Satyabhamaabhyam sahitam Krishamashraye..
Meaning In English: I salute and surrender to Lord Krishna whose complexion is blue like the sky, with wide eyes and four arms, who is well adorned, whose face glows like the moon, whose chest bears the srivatsa mark, who is seated on a golden throne in the shade of the Parijata tree with his wives Rukmani and Satyabhama.
Hindi Translation: मैं उन भगवान् उन भगवान् श्री कृष्णा को नमस्कार करता हूँ जो आसमान की तरह नीले रंग वाले है, जिनकी बड़ी बड़ी आँखें और चार हाथ है, चन्द्रमा जैसा चमकदार है, वक्ष स्थल पर श्रीवत्स बना हुआ है, जो सोने की सिंहासन पर पारिजात वृक्ष के नीचे रुक्मणि और सत्यभामा के साथ बैठे है.
वैसे मैंने पारिजात के फूलों का नाम पहले भी सुना था पर इस श्लोक को पड़ने के बाद पता चला शास्त्रानुसार स्वर्गलोक या पृथ्वीलोक में पारिजात वृक्ष को सर्वोत्तम स्थान प्राप्त है।
परिजात के वृक्ष को हारसिंगार भी कहा जाता है, क्यूंकि इसे भगवान हरि के श्रृंगार एवं पूजन में प्रयोग किया जाता . इसके फूलों को लक्ष्मी व शिवपूजन में अत्यधिक महत्व है।
कहते है परिजात के वृक्ष की खासियत है कि जो भी इसे एक बार छू लेता है उसकी थकान चंद मिनटों में गायब हो जाती है। उसका शरीर पुन: स्फूर्ति प्राप्त कर लेता है। हरिवंश पुराण के अनुसार पारिजात के वृक्ष को कल्पवृक्ष कहा गया है तथा इसकी उत्तपत्ति समुन्द्र मंथन से हुई थी। इस वृक्ष को देवराज इंद्र स्वर्गलोक ले गए थे। इसे छूने का अधिकार मात्र उर्वशी नामक अप्सरा को प्राप्त था, जिससे उर्वशी की सारी थकान दूर हो जाती थी।
वैसे परिजात एकमात्र ऐसा वृक्ष है जिस पर बीज नहीं लगते । इस अद्भुत वृक्ष पर पुष्प मात्र रात्री में खिलते हैं तथा प्रातः होने पर सभी फूल मुरझा जाते हैं। इन फूलों को मूलतः लक्ष्मी पूजन हेतु उपयोग किया जाता है परंतु मात्र उन्हीं फूलों को उपयोग किया जाता है जो स्वयं टूटकर गिरे हों। अतः शास्त्रों में पारिजात के फूल तोड़ना वर्जित कहा गया है। गंगा दशहरा के आसपास यह पेड़ फूल खिलाता है लेकिन हैरानी की बात है जब पेड़ से फूल झड़ते हैं तो वे पेड़ के करीब नहीं, बहुत दूर जाकर गिरते हैं।
हरिवंश पुराण के अनुसार एक समय देवऋषि नारद श्रीकृष्ण से मिलने पृथ्वीलोक आए। उस समय नारद के हाथों में परिजात के फूल थे तथा नारद ने वे फूल श्रीकृष्ण को भेंट किए। श्री कृष्ण ने वे फूल साथ में बैठी अपनी पत्नी रुक्मणी को दे दिए परंतु जब ये बात श्रीकृष्ण की एक और पत्नी सत्यभामा को ज्ञात हुई तो वो क्रोधित हो उठी तथा श्री कृष्ण से अपनी वाटिका हेतु परिजात वृक्ष की मांग की।
पति-पत्नी में झगड़ा लगाकर नारद, देवराज इन्द्र के पास गए और उनसे कहा कि मृत्युलोक से इस वृक्ष को ले जाने का षडयंत्र रचा जा रहा है लेकिन यह वृक्ष स्वर्ग की संपत्ति है, इसलिए यहीं रहना चाहिए।
श्रीकृष्ण के समझाने पर भी सत्यभामा शांत नहीं हुईं तथा अंत में सत्यभामा हठ के सामने झुकते हुए श्रीकृष्ण ने अपने एक दूत को स्वर्गलोक में परिजात वृक्ष को लाने के लिए भेजा पर उनकी यह मांग पर इंद्र ने इंकार कर दिया और वृक्ष नहीं दिया। जब इस बात का संदेश श्रीकृष्ण तक पहुंचा तो वे क्रोधित हो गए और इंद्र पर आक्रमण कर दिया। युद्ध में श्रीकृष्ण को विजयश्री प्राप्त हुई तथा श्रीकृष्ण इंद्र को पराजित कर परिजात वृक्ष ले आए।
हार से निराश इंद्र ने क्रोध में आकर परिजात के वृक्ष पर कभी भी फल न आने का श्राप दिया। इसी कारण परिजात पर कभी भी फल नहीं उगते। देव राज इंद्रा ने ये भी श्राप दिए के इस पेड़ के फूल दिन में नहीं खिलेंगे।
युद्ध के बाद श्रीकृष्ण ने पारिजात को लाकर सत्यभामा की वाटिका में लगवा दिया परंतु कृष्णा तो कृष्णा थे।सत्यभामा को सबक सिखाते हुए कुछ ऐसा किया की रात्री में पारिजात पर फूल तो उगते थे परंतु वे उनकी प्रिय पत्नी रुक्मणी(जो लक्ष्मी जी का ही अवतार थी) की वाटिका में ही गिरते थे। इस तरह सत्यभामा को वृक्ष तो मिला लेकिन फूल रुक्मिणी को ही प्राप्त होते थे।अतः आज भी जब इस वृक्ष के पुष्प झड़ते भी हैं तो पेड़ से काफी दूर जाकर गिरते हैं।
-K Himaanshu Shuklaa..
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