भारत माता मंदिर के संस्थापक निवृत्त शंकराचार्य पद्मभूषण स्वामी सत्यमित्रानंद गिरी जी महाराज मंगलवार सुबह 8:00 बजे हरिद्वार में उनके निवास स्थान राघव कुटीर में ब्रह्मलीन हो गए।
वह पिछले 15 दिनों से गंभीर रूप से बीमार थे और उनका देहरादून के मैक्स हॉस्पिटल में इलाज चल रहा था। लंबे समय तक वेंटिलेटर पर रहने के बाद उन्हें 5 दिन पहले हरिद्वार स्टेट उनके आश्रम ले आया गया था। यहीं पर उनकी कुटी को आईसीयू में तब्दील कर उनका इलाज चल रहा था।
जूना अखाड़ा के आचार महामंडलेश्वर स्वामी अवधेशानंद गिरी के मंगलवार को ब्रह्मलीन होने की जानकारी देते हुए बताया कि स्वामी सत्यमित्रानंद गिरी को उनके निवास स्थान राघव कुटीर में बुधवार को समाधि दी जाएगी।
एक दिव्य युग का अंत !!— Swami Avdheshanand (@AvdheshanandG) June 25, 2019
आध्यत्मिक जगत के दैदीप्यमान सूर्य का अवसान !!
अत्यंत व्यथित हृदय से सूचित कर रहें हैं कि भारत माँ के परमआराधक,निवर्तमान जगद्गुरू शंकराचार्य ,पद्मभूषण पूज्य गुरुदेव महासमाधि द्वारा पञ्च भौतिक शरीर त्यागकर आत्मस्वरूपस्थ - ब्रह्मलीन हो गये हैं। pic.twitter.com/g6nEAPOHZv
Swami Satyamitranand Giri Ji epitomised spirituality and wisdom. He devoted his life towards empowering the poor, marginalised and downtrodden. He was extremely proud of India’s rich history and culture. My tributes to this divine soul. Om Shanti.— Narendra Modi (@narendramodi) 25 June 2019
पद्मभूषण पूज्य गुरुदेव स्वामी सत्यमित्रानंद गिरि जी महाराज के निधन से अत्यंत दुखी हूँ।— Amit Shah (@AmitShah) 25 June 2019
वह ज्ञान, धर्म, आध्यतम और सादगी के एक ऐसे प्रतीक थे जिन्होंने पूरे विश्व में सनातन संस्कृति की पताका फहराई। उन्होंने नर सेवा को नारायण सेवा मान अपना पूरा जीवन जनकल्याण को समर्पित कर दिया। pic.twitter.com/dwiWFo7gt9
स्वामी सत्यमित्रानंद गिरि जी महाराज माँ भारती के एक सच्चे उपासक थे, हरिद्वार का भारत माता मंदिर जिसका परिचायक है। उनके विचार, ज्ञान और दर्शन आने वाली पीढ़ियों को धर्म और राष्ट्रसेवा के लिए सदैव प्रेरित करते रहेंगे। मैं उनके अनुयायियों के प्रति संवेदना व्यक्त करता हूँ। ॐ शांति— Amit Shah (@AmitShah) 25 June 2019
वरिष्ठ धर्माचार्यों में वरेण्य स्थान रखने वाले एवं भारत माता मंदिर,हरिद्वार के संस्थापक पद्मभूषण, निवृत्त जगद्गुरु शंकराचार्य,आचार्य महामण्डलेश्वर स्वामी सत्यमित्रानंद गिरि जी महाराज जी ने पंच महाभूतों से निर्मित शरीर का भी त्याग किया— Yogi Adityanath (@myogiadityanath) June 25, 2019
गोलोकवासी हुए आत्मतत्व को नमन एवं श्रद्धांजलि
राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित प्रख्यात शिक्षक उनके पिता शिवशंकर पांडेय ने उन्हें बचपन से ही अध्ययनशीलता, चिंतन और सेवा का का पाठ पढ़ाया था और उन्हें सदैव अपने लक्ष्य के प्रति सजग और सक्रिय रहने की प्रेरणा दी। यही वजह थी कि वह अपने बाल्यावस्था से ही अध्ययनशील, चिंतक और निस्पृही व्यक्तित्व के धनी हो गए थे। सेवाभाव की अधिकता के कारण उनका मन मानव और धर्मसेवा में अधिक लगता था और सांसारिक जीवन से उनका कोई प्रेमभाव कभी नहीं रहा। अपनी इसी खूबी के कारण देश के भीतर उनका जितना सम्मान था, विदेशों में भी उनकी उतनी ही ख्याति थी।
उन्होंने बेहद कम आयु में ही महामंडलेश्वर स्वामी वेदव्यासानंद महाराज से संन्यास दीक्षा ग्रहण कर गृहत्याग कर 'सत्यमित्र ब्रह्मचारी' के रूप में धर्म साधना को अपना कर्म क्षेत्र बना लिया।
29 अप्रैल 1960 अक्षय तृतीया के दिन मात्र 26 वर्ष की आयु में ज्योतिर्मठ भानपुरा पीठ पर जगद्गुरु शंकराचार्य पद पर उन्हें प्रतिष्ठित किया गया। वे इस आयु में शंकराचार्य बनने वाले भारत के प्रथम संन्यासी थे। शंकराचार्य का पद त्यागने वाले भी वे एक मात्र ही थे।
भानपुरा पीठ के शंकराचार्य के तौर पर करीब नौ वर्षों तक धर्म और मानव के निमित्त सेवा कार्य करने के बाद उन्होंने 1969 में स्वयं को शंकराचार्य पद से मुक्त कर गंगा में दंड का विसर्जन कर दिया और खुद को परिव्राजक संन्यासी के रूप में प्रस्तुत कर धर्म और मानव सेवा के आजीवन संकल्प संग देश-विदेश में भारतीय संस्कृति व अध्यात्म के प्रचार-प्रसार में लग गए और जीवन के अंतिम समय तक इसी में लीन रहे।
उनका देश के शीर्ष राजनेताओं इंदिरा गांधी, अटल बिहारी वाजपेई, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, राजनाथ सिंह, आरएसएस के प्रमुख रहे कई संघचालकों से निजी संबंध थे । 3 साल पहले उन्हें भारत सरकार ने पदम विभूषण की उपाधि से सम्मानित किया था।
स्वामी सत्यमित्रानंदजी को सूती कपड़े का अचला और कौपिन पहनना बहुत पसंद था। महाराज हर साल गुरु पूर्णिमा के दिन अपने भक्तों को 400 मीटर सूती कपड़ा बांटता थे।
सादा भोजन करने वाले जगद्गुरू शंकराचार्य को मीठा बहुत पसंद था। मीठे में भी मोदक उनका सबसे लोकप्रिय व्यंजन था। बताया जाता है कि वह नियमानुसार दिन में तीन बार मोदक का सेवन करते थे। वे कहते थे कि मोदक खाने से मुंह से हमेशा मीठे शब्द निकलते हैं।
मधुर भाषी ओजस्वी वक्ता स्वामी सत्यमित्रानंद महाराज के निधन से भारतीय दशनामी सन्यासी परंपरा एक युग का अंत हो गया है ।
महान पुण्यात्मा को सादर श्रद्धांजलि!!
ॐ शांति!
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