आज कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी है। कहते है भगवान विष्णु अपनी चार महीने की निद्रा से आज उठते है इसीलिए इसे देवउठनी एकादशी या प्रबोधिनी एकादशी भी कहा जाता है ।
भगवान विष्णु को जगाने का मंत्र
भगवान् को निंद्रा से उठाने के लिए इस मन्त्र का जप करें, अगर उच्चारण न कर पाए तो 'उठो देवा, जागो देवा, बैठो देवा' कहकर श्रीनारायण को उठाएं।
उत्तिष्ठ गोविन्द त्यज निद्रां जगत्पतये। त्वयि सुप्ते जगन्नाथ जगत् सुप्तं भवेदिदम्॥
उत्थिते चेष्टते सर्वमुत्तिष्ठोत्तिष्ठ माधव। गतामेघा वियच्चैव निर्मलं निर्मलादिशः॥
शारदानि च पुष्पाणि गृहाण मम केशव।
प्रबोधिनी एकादशी के दिन तुलसी जी का विवाह भगवान शालिग्राम के साथ करवाने की भी परंपरा है।
पुराणों में जलंधर नाम के असुर का वर्णन है। वो थे तो शिव पुत्र, पर अपने ही पिता के दुश्मन भी थे। श्रीमद् देवी भागवत पुराण के अनुसार एक बार भगवान शिव ने अपना तेज समुद्र में फेंक दिया इससे जलंधर उत्पन्न हुआ।
जलंधर अपार शक्तिशाली असुर था और उसका विवाह वृंदा से हुआ, जो परम पतिव्रता स्त्री थी।
वो वृंदा का तप ही था जिसके कारण सभी देवी-देवता मिलकर भी जलंधर को पराजित नहीं कर पा रहे थे।
जलंधर के मन में अभिमान घर कर गया और वह वृंदा के पतिव्रत धर्म की अवहेलना करके देवताओं के विरुद्ध कार्य कर उनकी स्त्रियों को सताने लगा।
खुद को सर्वशक्तिमान रूप में स्थापित करने के लिए, इंद्र को परास्त कर जालंधर त्रिलोधिपति बन गया। इसके बाद उसने बैकुंठ पर आक्रमण कर दिया। वो लक्ष्मी को विष्णु से छीन लेना चाहता था, लेकिन देवी लक्ष्मी ने जलंधर से कहा कि हम दोनों ही जल से उत्पन्न हुए हैं इसलिए हम भाई-बहन हैं। लक्ष्मी की बातों से जलंधर प्रभावित हुआ और लक्ष्मी को बहन मानकर बैकुंठ से चला गया।
इसके बाद वो कैलाश पर आक्रमण करने गया। कहते है उसने पार्वती पर भी कुदृष्टि डाली, इससे देवी क्रोधित हो गईं और तब महादेव को जलंधर से युद्ध करना पड़ा। वृंदा का सतीत्व, शिव के हर प्रहार को निष्फल कर रहा था।
अंत में देवताओं ने मिलकर योजना बनाई और भगवान विष्णु ने जलंधर का रूप धारण कर वृंदा का सतीत्व भंग कर दिया। यहाँ वृंदा का पतिव्रत धर्म टूटा, वहाँ शिव ने जलंधर का वध कर दिया।
एक कथा अनुसार सतीत्व भंग हो जाने के बाद दुखी व्यथित वृंदा ने आत्मदाह कर लिया, और तब उसकी राख के ऊपर तुलसी का एक पौधा जन्मा।
एक और कथा के अनुसार जब वृंदा को सच के बारे में पता चला तब पति की मौत पर दुखी वृंदा ने भगवान विष्णु को पत्थर बन जाने का श्राप दे दिया। इसीलिए विष्णु शालिग्राम कहलाये। वृंदा ने श्री हरी को ये भी श्राप दिया की वे अपनी पत्नी से अलग हो जायेगे, इसीलिए जब विष्णु राम बनकर आये तो उन्हें सीता से अलग होना पड़ा।
अपराधबोध से ग्रसित विष्णु ने वृंदा से माफ़ी मांगी, और प्रतिज्ञा ली की वृंदा को तुलसी बनाकर हमेशा अपने पास रखेंगे। विष्णु ने कहा जो मनुष्य कार्तिक एकादशी के दिन तुम्हारे साथ मेरा विवाह करेगा, उसकी सभी मनोकामनाएं पूरी होंगी। इसीलिए शालिग्राम और तुलसी का विवाह भगवान विष्णु और महालक्ष्मी का ही प्रतीकात्मक विवाह माना जाता है।
किसी असुर को हारने के लिए एक स्त्री का शील भांग करना सही था या नहीं ये विष्णु जाने।
मैंने सुना है इस दिन व्रत करने से बैकुंठ धाम की प्राप्ति होती है। एक दिन का व्रत रखने से बैकुंठ? अजीब है ना?
बैकुंठ जाने के लिए श्रम करना पड़ता है, अच्छे कर्म करने पड़ते है। भूखे रहके विट्ठल विट्ठल करना शायद आपको श्रम लगे, पर क्या सिर्फ ये करना अच्छा कर्म है? सोचियेगा ज़रूर। वैसे दिल के खुश रखने को ग़ालिब ये ख़याल अच्छा है।
-K Himaanshu Shuklaa..
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