आज दोपहर में खाना बनाते वक़्त चावल में कुछ कीड़े दिखे, मैंने सोचा चावल फेकने से बेहतर है इन्हे धुप में रख दू। श्याम को जब मैं चावल की प्लेट खिड़की से उठाने गया तो देखा, ४-५ चिड़िया और कुछ कबूतर बड़े आराम से चावल खा रहे है। मुझे गुस्सा आ गया और मैंने ज़ोर से चिल्लाया, बिचारे चिड़िया और कबूतर डर के उड़ गए। ज्यादा नुक्सान नहीं हुआ ये सोचके मैं ख़ुश हो ही रहा था के गुरु नानक देव जी की एक बात याद आ गयी।
लॉकडाउन के तकरीबन २ हफ्ते पहले वर्सोवा के गुरुद्वारा साहिब सचखंड दरबार जाना हुआ था, वहाँ गुरु नानक देव जी से जुड़ी की खूबसूरत बात सुनने को मिली। नानक के पिता का नाम कल्यानचंद दास बेदी था, जो पेशे से पटवारी हुआ करते थे।
नानक की पढ़ाई में रूचि नहीं थी, इसीलिए उनके पिता एक बार उन्हें फसलों की देखरेख के लिए खेत भेजा दिया। नानक प्रकृति के सौन्दर्य देखने में मशरूफ हो गए और वह काम भूल गए जिसके लिए उनके पिता ने उन्हें खेत में भेजा था। नानक रखवाली कर रहे थे और चिड़िया उनके सामने खेत चुग रही है।
नानक चिड़ियों को देख आनंदित हो रहे थे और खेत के पास से जाते हुए लोग नानक के इस पागलपन को देखके हस रहे थे।
किसी ने ये बात नानक के घर जाकर उनके पिता को बतायी, बिचारे कल्यानचंद जी जिन्हे लोग मेहता कालू भी कहते थे, दौड़े-दौड़े खेत पहुंचे। उन्होंने देखा सैकड़ो की तादात में चिड़िया खेत चुग रही थी। वे बहुत गुस्सा हुए और चिल्लाकर चिड़ियों को खेत से भगाने लगे।
जब नानक ने अपने पिता को चिड़ियों को भगाने से मन किया और कहा की इन्हे दाना चुगने दीजिये, तो उनके पिता और गुस्सा हो गए। वो नानक से बोले, "मुर्ख हो क्या? अगर ये चिड़िया ऐसे ही खेत से दाना चुगती रही तो हमारे लिए क्या बचेगा?"
कहते है तब नानक ने आसमान की तरफ ऊँगली उठा कर कहा, "हमारे लिए क्या बचेगा ये बात उस ऊपर वाले पर छोड़ दीजिये, उसको सबकी चिंता है हमारी भी और इन चिड़ियों की भी।"
उसके बाद नानक चिड़ियों को देखके कहते है, "राम जी की चिड़िया, राम जी का खेत। खा ले चिड़िया भर-भर पेट।।"
नानक की पिता को ये बात तब समझ नहीं आयी, पर जब कुछ दिनों बाद जब फसल काटी गयी तो वे हैरत में थे, गांव में सबसे अधिक अनाज उनके खेत से ही निकला था।
कितनी खूबसूरत बात कही थी ना नानक ने? अगर अच्छी बात थी और मैंने पहले सुनी थी तो मुझे चावल खाती हुई चिड़ियों पे गुस्सा क्यों आया?
क्यूंकि मुझे लगा चावल मेरे है, मैंने पैसे देखे खरीदे है।
पर पैसे कहा से आये?
मेरी मेहनत से..
मेहनत मैंने की, पैसे मैंने कमाए, चावल मैं लाया तो मैं उन्हें चिड़ियों के साथ क्यों शेयर करू? फिर याद आया, जो बाटा जाए तो प्रसाद है जो बटोरा जाए वो विषाद है। ये बात शायद साध्वी ऋतंभरा या फिर स्वामी अवधेशानंद गिरि जी ने किसी भागवत कथा में कही थी।
थोड़ी आत्मग्लानि हुई, फिर नज़र उन चिड़ियों और कबूतरों पे गयी जो खिड़की के बहार से अब भी मुझे और चावल की प्लेट को देख रहे थे। मैंने उन्हें देखके माफ़ी मांगी और कहा, राम जी की चिड़िया, राम जी की प्लेट । खा ले चिड़िया भर-भर पेट।
-K Himaanshu Shuklaa..
लॉकडाउन के तकरीबन २ हफ्ते पहले वर्सोवा के गुरुद्वारा साहिब सचखंड दरबार जाना हुआ था, वहाँ गुरु नानक देव जी से जुड़ी की खूबसूरत बात सुनने को मिली। नानक के पिता का नाम कल्यानचंद दास बेदी था, जो पेशे से पटवारी हुआ करते थे।
नानक की पढ़ाई में रूचि नहीं थी, इसीलिए उनके पिता एक बार उन्हें फसलों की देखरेख के लिए खेत भेजा दिया। नानक प्रकृति के सौन्दर्य देखने में मशरूफ हो गए और वह काम भूल गए जिसके लिए उनके पिता ने उन्हें खेत में भेजा था। नानक रखवाली कर रहे थे और चिड़िया उनके सामने खेत चुग रही है।
नानक चिड़ियों को देख आनंदित हो रहे थे और खेत के पास से जाते हुए लोग नानक के इस पागलपन को देखके हस रहे थे।
किसी ने ये बात नानक के घर जाकर उनके पिता को बतायी, बिचारे कल्यानचंद जी जिन्हे लोग मेहता कालू भी कहते थे, दौड़े-दौड़े खेत पहुंचे। उन्होंने देखा सैकड़ो की तादात में चिड़िया खेत चुग रही थी। वे बहुत गुस्सा हुए और चिल्लाकर चिड़ियों को खेत से भगाने लगे।
जब नानक ने अपने पिता को चिड़ियों को भगाने से मन किया और कहा की इन्हे दाना चुगने दीजिये, तो उनके पिता और गुस्सा हो गए। वो नानक से बोले, "मुर्ख हो क्या? अगर ये चिड़िया ऐसे ही खेत से दाना चुगती रही तो हमारे लिए क्या बचेगा?"
कहते है तब नानक ने आसमान की तरफ ऊँगली उठा कर कहा, "हमारे लिए क्या बचेगा ये बात उस ऊपर वाले पर छोड़ दीजिये, उसको सबकी चिंता है हमारी भी और इन चिड़ियों की भी।"
उसके बाद नानक चिड़ियों को देखके कहते है, "राम जी की चिड़िया, राम जी का खेत। खा ले चिड़िया भर-भर पेट।।"
नानक की पिता को ये बात तब समझ नहीं आयी, पर जब कुछ दिनों बाद जब फसल काटी गयी तो वे हैरत में थे, गांव में सबसे अधिक अनाज उनके खेत से ही निकला था।
कितनी खूबसूरत बात कही थी ना नानक ने? अगर अच्छी बात थी और मैंने पहले सुनी थी तो मुझे चावल खाती हुई चिड़ियों पे गुस्सा क्यों आया?
क्यूंकि मुझे लगा चावल मेरे है, मैंने पैसे देखे खरीदे है।
पर पैसे कहा से आये?
मेरी मेहनत से..
मेहनत मैंने की, पैसे मैंने कमाए, चावल मैं लाया तो मैं उन्हें चिड़ियों के साथ क्यों शेयर करू? फिर याद आया, जो बाटा जाए तो प्रसाद है जो बटोरा जाए वो विषाद है। ये बात शायद साध्वी ऋतंभरा या फिर स्वामी अवधेशानंद गिरि जी ने किसी भागवत कथा में कही थी।
थोड़ी आत्मग्लानि हुई, फिर नज़र उन चिड़ियों और कबूतरों पे गयी जो खिड़की के बहार से अब भी मुझे और चावल की प्लेट को देख रहे थे। मैंने उन्हें देखके माफ़ी मांगी और कहा, राम जी की चिड़िया, राम जी की प्लेट । खा ले चिड़िया भर-भर पेट।
-K Himaanshu Shuklaa..
kitna achcha likha hai , read karke rona aa gaya meko
ReplyDeleteBahot khoob Himanshu bahot khoob..
ReplyDeleteजय गुरू नानक देव.... मुझे माफ करना , इस की सच्चाई जाने , ... यह एक संत की बचपन की कथा है l मुझे पूरी तरह याद नही l , कुछ नयीम सा नाम है l मैं गलत भी हो सकता हूँ l पर बाद बहुत साधुवाद है l संत ही लिख सकता है एसे l पुन: माफी l
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