कहते है आत्मा अमर है, और प्रायः कर्मो के जटिल खेल में फसकर आत्मा जन्म, मृत्यु फिर पुनर्जन्म के महासागर में गोते लगाती रहती है।
किसी की मृत्यु के बाद हम उसके नाम के आगे स्वर्गीय लगा देते है, पर क्या वे सच में स्वर्गवासी हुए? क्या मरने के बाद सब स्वर्ग जाते है? शायद नहीं..
कुछ आत्माएँ बुरे कर्मों के कारण दुःख भोगती हैं। कुछ प्रतिशोध लेने या अपने अधूरे सपनों और महत्वाकांक्षाओं को पूरा करने के लिए पुनर्जन्म का विकल्प चुनती है। अन्यथा नर्क में कष्ट उठा रही होती है।
इसलिए, सनातन में श्राद्ध करने की मान्यता है। महालया अमावस्या (सर्व पितृ अमावस्या) के दिन श्राद्ध पक्ष को पूर्ण विराम लगता है। हम इन दिनों में पूजा,अर्चना करके हमारे पूर्वजो को बुरे कर्मों से मुक्ति की कामना करते है। श्राद्ध करके हम आध्यात्मिक रूप से उन तक सकारात्मक ऊर्जा पहुंचाते है।
यदि वे दोबारा जन्में है तो हम प्रार्थना करते हैं कि उनका जीवन सुखमय हो।
उन्हीं के कारण हमारा अस्तित्व है, इसीलिए इन दिनों हम हृदय से उनका आभार व्यक्त करते हैं।
एक और बात जो शायद आपको थोड़ी अजीब लगे, हम भी तो जन्म मृत्यु के चक्र में फसे है। संभव है कि पिछले जन्मों के हमारे वंशज कहीं न कहीं हमारे लिए प्रार्थना कर रहे हों। इसीलिए मेरा मानना है महालया अमावस्या पर हम अपने वर्तमान शरीर के पूर्वजों के लिए प्रार्थना करने के साथ-साथ अपने पिछले जन्म के वंशजों के लिए भी आशीर्वाद भेजना चाहिए। हमारे पिछले वंशज हमें याद करे न करे, पर हम तो उनके लिए ईश्वर से प्रार्थना कर सकते है ना?
आप सबने पूर्वजों के लिए श्राद्ध, पिंडदान और तर्पण किया होगा, गाय, श्वान, कौए और चींटी को भोजन दिया होगा। ब्राह्मण भोज भी कराया होगा।
श्राद्ध पक्ष खत्म हो रहा है, पर आप जब हो सके किसी भी भूखे जानवर को भोजन करवाते फिर चाहे वो जानवर शूकर ही क्यों न हो। क्या पता हमारे कोई पूर्वज बुरे कर्मो के कारण शूकर बने हो।
कोशिश करे पेड़ लगाए, हो सकता है चिड़िया के रूप में जन्मे आपके पूर्वज उस वृक्ष पर अपना घोसला बनाये।
जलाशय दूषित न करे, आपके पूर्वज मछली बनके शायद किसी नदी, तालाब या समंदर में रह रहे हो। आपकी द्वारा विसर्जित की हुई प्लास्टर ऑफ़ पेरिस की गणपति या माँ दुर्गा की मूर्ति, या फिर पॉलिथीन, कांच के टुकड़े उन्हें तकलीफ दे सकते है, मौत का कारण भी बन सकते है।
आपके पूर्वज जो किसी और रूप में विचरण कर रहे है अगर आपके कारण तकलीफ पाते है, तो फिर श्राद्ध करने का क्या औचित्य?
बेटे ने हमारी इच्छा के विरुद्ध किसी और धर्म की लड़की से विवाह कर लिया, बेटी शादी नहीं करना चाहती, बहु से वारिस नहीं मिला, बुढ़ापे में बच्चे साथ नहीं देते। अपने बच्चो से ऐसी महत्वकांक्षाये न करे जो शायद वे पूरी ना करे। मृत्यु का भरोसा नहीं, वो किस पल दरवाज़ा खटखटा दे पता नहीं। आपकी अधूरी इच्छाएं, बच्चो से महत्वकांक्षाये शायद आगे आने वाली पीढ़ी के लिए पितृ दोष बन सकती है।
महामृत्युंजय मंत्र सिर्फ बोले नहीं, उसके अर्थ को समझे।
'उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्,' जैसे के परिपक्व ककड़ी अपनी बेल से बिना कष्ट अलग हो जाती है ठीक वैसे ही हमें जन्म और मृत्यु के चक्र से मुक्ति दिलाये।
महत्वकांक्षाये मुक्ति में बाधाक बन सकती है, इसीलिए उन्हें त्याग दे, सबको क्षमा करे और सबसे क्षमा मांग ले
हरि ॐ तत् सत्,
-K Himaanshu Shuklaa..
Awesome and well written. Good Job
ReplyDeleteWow this is amazing
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